बर्मिंघम (ब्रिटेन) : अफगानिस्तान की सत्ता पर अप्रत्याशित रूप से तालिबान के काबिज होने के बाद नए सिरे से ‘गृह युद्ध’ छिड़ने की आशंकाएं जतायी जाने लगीं है। बहरहाल, अभी तक ये खबरें गुमराह करने वाली साबित हुई हैं। ‘गृह युद्ध’ उस स्थिति को कहते हैं जब विद्रोही आंदोलन और सरकार आमने-सामने होते हैं। लेकिन फिलहाल अफगानिस्तान में कोई सरकार नहीं है, लिहाजा इस समय सैद्धांतिक रूप से गृहयुद्ध छिड़ने की आशंका कम नजर आ रही है। हालांकि, तालिबान के सत्ता पर काबिज होने के बाद उसकी राह आसान नजर नहीं आ रही। पूर्व सिपहसालारों की चुनौती तालिबान का सिरदर्द बढ़ा सकती है। 2001 में केवल अमेरिका समर्थित नॉदर्न अलायंस ही नहीं बल्कि अन्य स्थानीय कमांडर और राजनीतिक नेता भी काबुल से तालिबान को हटाकर उनके अधिकार को चुनौती दे रहे थे। 2021 में तालिबान स्थानीय समूहों को साथ आने या तटस्थ रहने के लिये राजी करके सत्ता में आया।
अब जब तालिबान एक सरकार और शासन व्यवस्था स्थापित करने की कोशिश कर रहा है, तो यह संभव है कि ये समूह तालिबान के मातहत रहने का विरोध कर सकते हैं। वे स्वायत्तता की कमी पर रोष प्रकट कर सकते हैं, या काबुल में नयी व्यवस्था के विरोध में राजनीतिक और आर्थिक लाभ देख सकते हैं। फिर भी इनमें से किसी भी समूह की तालिबान की तरह राष्ट्रीय पहुंच नहीं है। और 2001 के विपरीत, अफगानिस्तान में किसी बाहरी शक्ति का समर्थन भी उन्हें हासिल नहीं है। इसलिए अफगानिस्तान का निकट भविष्य अधर में है। तालिबान को वैधता मिलती है तो उसकी जमीन जरूर मजबूत होगी, ऐसे में अफगानिस्तान के अशांत सिंहासन के लिए फिलहाल किसी राष्ट्रीय विकल्प के उभरने की संभावना नहीं है।