लखनऊ । ऑल इंडिया बैंक ऑफीसर्स कन्फेडरेशन (ऑयबाक) की राष्ट्रीय महासचिव सौम्या दत्ता ने कहा कि भारत में सरकारी बैंको पर भराेसे में इजाफा हुआ है और इनके निजीकरण से बैंक विफलताओं की समस्या फिर से सामने आएगी।संसद के शीतकालीन सत्र में प्रस्तावित बैंक निजीकरण बिल के विरोध में शनिवार को यहां आयोजित आमसभा में दत्ता ने कहा कि आजादी के बाद 1947 से 1955 के बीच 361 बैंक बंद हुए जिससे जमाकर्ताओं की पूँजी डूब गई और लोगों का बैंकिंग सिस्टम से भरोसा उठने लगा, फिर वर्ष 1969 में 14 तथा 1980 में 6 वाणिज्यिक बैंकों को राष्ट्रीयकृत किया गया जिससे भारत में सरकारी बैंकों का भरोसा बढ़ा। बैंकों के निजीकरण से बैंक विफलताओं की समस्या फिर से सामने आएगी। वर्ष 2004 में ग्लोबल ट्रस्ट बैंक तथा 2020 में यस बैंक, लक्ष्मी विलास बैंक एवं पीएमसी बैंक का हश्र सबके सामने है जबकि सार्वजनिक क्षेत्र का एक भी बैंक विफल नहीं रहा है।सभा संचालित करते हुये बैंक ऑफ इंडिया ऑफिसर्स एसोसिएशन के प्रदेश महासचिव सौरभ श्रीवास्तव ने कहा कि बैंक निजीकरण से बैंक जमा की सुरक्षा कमजोर होगी, भारत में जमाकर्ता की कुल बचत, जो पिछली मार्च तक 87.6 लाख करोड़ रूपये का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा 60.7 लाख करोड़ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के पास है, जो कि अपनी जमा के लिए सरकारी बैंकों को प्राथमिकता देते हैं। आयबॉक के वरिष्ठ उपाध्यक्ष ने पवन कुमार ने कहा कि बैंक निजीकरण से किसानों, छोटे व्यवसाइयों और कमजोर वर्गों के लिए ऋण उपलब्धता कम होगी। प्राथमिकता क्षेत्र का 60 प्रतिशत ऋण जो कि गांव, गरीब, सीमान्त किसान, गैर कार्पोरेट उद्यमियों, व्यक्तिगत किसान, सूक्ष्म उद्यम, स्वयं सहायता समूह तथा एस.सी./एस.टी., कमजोर और अल्पसंख्यक वर्ग की 12 सरकारी बैंकों और उनके 43 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक द्वारा प्रदान किया जाता है। इस मौके पर सामाजिक अर्थशास्त्री मनीष हिन्दवी ने कहा कि बैंक निजीकरण का अर्थ बैंकों को कार्पोरेट हाथों में सौंपने से है जो स्वयं बैंक ऋण को नहीं चुका पा रहे हैं। निजी बैंकों में फ्रॉड और एनपीए के बढ़ते मामले यह बताने को काफी है कि बैंकों के निजीकरण से जनता का पैसा पूंजीपति हड़प लेंगे और जिससे सिर्फ और सिर्फ पूँजीवाद को ही बढ़ावा मिलने वाला है। सभा में देश के सरकारी बैंक और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को बेचने के विरूद्ध सशक्त आवाज उठाने में जनता से मदद की अपील की गई।